ghazal ganga aur uski lahren

841
टिका है दम ये किस उम्मीद पे, पूछो उनसे
यहाँ जो कहते हैं– ‘दम के सिवा कुछ और नहीं’
842
ठाठ पत्तों का हुआ झीना, गुलाब !
अब कहीं मुँह को छिपाना चाहिए
843
ठुमरी-सी भैरवी की, ख़ुमारी शराब की
दिल में है उनकी याद कि ख़ुशबू गुलाब की
844
डबडबा आयीं न हो सुनते ही आँखें उनकी
ज़िक्र जब भी मेरा आया हो वहाँ, कौन कहे !
845
डर न होता जो उसे डाल के काँटों का, गुलाब !
देखकर उसने तुझे, मुँह नहीं मोड़ा होता
846
डरते जो आँधियों से, वे माँझी थे और ही
लिपटी किसीकी बाँह मेरे साथ रही है
847
डरते हुए लहरों से जीना है कोई जीना !
बेजान किनारों से तूफ़ान ही अच्छे हैं
848
डाँड़ हम ख़ूब चलाते हैं, फिर भी क्या कहिए !
नाव दो हाथ ही रहती है भँवर के आगे
849
डाल फूलों की लचकती है हवा लगते ही
खेल आँखों का है, आँखों में ही बस रहने दे
850
डूबने का मज़ा वे क्या जानें
जो किनारों की सैर करते हैं !
851
डूबी है नाव अपने ही पाँवों की चोट से
हम नाचने लगे थे किनारों को देखकर
852
ढाढ़स नहीं, भरोसा नहीं, प्यार भी नहीं
झूठी अब और जीने की आशा न दीजिए
853
ढाढ़स है, मन का भेद है, आँचल की है हवा
देने की लाख चीज़ें हैं, धोखा न दीजिए