ghazal ganga aur uski lahren

854
तड़पके आ गयी मंज़िल हमारे पाँव के पास
लगन को इतनी बुलंदी पे लाके छोड़ दिया
855
तड़पी होगी कोई बिजली भी तो उस दिल में कभी !
कोई बरसात उन आँखों में भी छायी होगी !
856
तमाम उम्र बड़ी कशमकश में गुज़री है
कभी तो मुझको बता दे तू अपने प्यार का राज़
857
तलब आँखों में, चक्कर पाँव में है दिल में बेचैनी
नहीं अब इनसे बढ़कर और कुछ आराम बाक़ी है
858
तलब ग़म की ख़ुशी से बढ़ गयी है
ये चाहत ज़िंदगी से बढ़ गयी है
859
ताब थी क्या लहरों की, डुबा दें ! नाव को डर तूफ़ान का कब था !
जिनके लिये हम मौत से जूझे, ख़ुद वे किनारे ही हुए दुश्मन
860
तारों को देखकर ही नहीं आयी उनकी याद
कुछ बात बिना कोई मुहूरत भी हुई है
861
तितलियाँ मुँह फिरा रही हैं, गुलाब !
अब है बदली हुई हवा, समझें
862
तीमारदारियाँ तो बहुत कर रहे हैं दोस्त
जायगी जब ये जान तभी जायगा ये ग़म
863
तीर तो थे तरकश में हज़ारों, चल भी गये कुछ चल न सके
टूटके उन क़दमों में गिरे कुछ, कुछ हैं दिलों के पार हुए
864
तुझसे आती है किसी जूड़े की तो ख़ुशबू, गुलाब !
हाथ से दामन मगर छूटा हुआ लगता है आज
865
तुझसे बड़ी भी चीज़ है कुछ तुझमें, ज़िंदगी !
तड़पा किये हैं हम जिसे पाने की चाह में
866
तुझसे मिलकर तो बढ़ी है ये जलन, तू ही बता-
‘और किस तरह लगी दिल की बुझायी जाती !’
867
तुझसे मिलने का किया वादा तो है उसने, ‘गुलाब’ !
टल न जाये वह सदा को, दिन-ब-दिन टलते हुए
868
तुझसे मिलने को लिया भेस था दीवाने का
उठके आया है शहर, हमने ये कब चाहा था
869
तुझसे लड़ जाय नज़र, हमने ये कब चाहा था !
प्यार भी हो ये अगर, हमने ये कब चाहा था !
870
तुझे देखे परदा उठाके जो, किसी दूसरे की मज़ाल क्या !
ये तो आईने का कमाल है कि हज़ार रंग बदल सके
871
तुम अभी तो खिले थे, गुलाब !
रंग दम भर में क्यों उड़ चले !
872
तुमने नज़रें तो फेर लीं हमसे
दिल से मुमकिन नहीं भुला देना
873
तुम्हारा प्यार हमारा है, बस हमारा है
कहीं न जान की दुश्मन ये दोस्ती बन जाय !
874
तुम्हारी ही यादों की लौ जल रही थी
दिवाली के जब भी दिये जगमगाये
875
तुम्हारे प्यार की धुन में खिला तो सौ गुलाब आये
भले ही हम न खिल पाये, हमें भी याद कर लेना
876
तुम्हारे प्यार को भूलें तो भूल जायें हम
तुम्हारी याद को दिल से भुला नहीं सकते
877
तुम्हारे रूप को आँखों में भर लिया हमने
किसीसे और अब आँखें मिला नहीं सकते
878
तुम्हारे रूप को चाहे भला कहे तो कहे
हमारे प्यार को दुनिया बुरा कहे तो कहे
879
तुम्हीं जो रूठ गये, गायें भी तो क्या गायें !
हमारा गीत भी रोने का बहाना होगा
880
तुम्हें प्यार करने को जी चाहता है
फिर एक आह भरने को जी चाहता है
881
तू अँधेरा है, तू ही रोशनी, तू ही मौत है, तू ही ज़िंदगी
मेरे ‘मैं’ में ‘तू’, तेरे ‘तू’ में ‘मैं’, तुझे ख़ुद से कैसे जुदा कहूँ !
882
तू क़दम-क़दम मेरे साथ है, मेरे हाथ में तेरा हाथ है,
मेरी लौ तो आबेहयात है, ये दिया जला कि बुझा कहूँ
883
तू कहाँ इन ऐशगाहों में, गुलाब !
तेरे दीवानों की महफ़िल और है
884
तू कुछ न कह, निगाहें कहे देती हैं सभी
रातों का यह ख़ुमार कभी छिप नहीं सकता
885
तू खिला इस तरह जो रहेगा, गुलाब ! प्यार भी उनकी आँखों में आ जायगा
तेरी ख़ुशबू तो उन तक पहुँच ही गयी, रुकके जूड़ा भले ही सँवारा नहीं
886
तू जिसके लिये बेचैन है यों, वह दर्द को तेरे जान तो ले
सीने पे न रक्खे हाथ, मगर, सीने की तड़प पहचान तो ले
887
तू जो परदा न उठाये तो ये किसका है क़सूर !
हमने यह रात लिखा दी है तेरे प्यार के नाम
888
तू भले ही कभी नज़रों को न आता है नज़र
तेरे क़दमों की तो आहट मेरी हर तान में है
889
तू भले ही रहा दुनिया से अलग होके, ‘गुलाब’ !
पर किसीने था हज़ारों में तुझको देख लिया
890
तू भले ही रात न था कहीं, वो वहम भी था तो बुरा नहीं
कि कभी हमारे क़रीब ही, तेरे पाँव आके ठहर गये
891
तू भले ही हाथ न थाम ले, कभी मुझको अपना पता तो दे
कि भटक न जाऊँ मैं राह में, तेरा दर बहुत अभी दूर है
892
तू भले ही है छिपा रंगमहल में अपने
तेरे पाँपोश तो, प्यारे ! हैं नज़र के आगे
893
तू मेरे प्यार की धड़कन तो समझता है ज़रूर
मैं भले ही कभी होंठों से तेरा नाम न लूँ
894
तू यहाँ मिले कि वहाँ मिले, तुझे ‘हाँ’ कहूँ कि मैं ‘ना’ कहूँ !
उसी रंग में हो जहाँ मिले, ये बता कि मैं तुझे क्या कहूँ
895
तू समझता रहे हमें कुछ भी
हम तुझे क्यों न दिलरुबा समझें !
896
तेज़ लहरों के झकोरों में बहे जाते हैं हम
हाथ में आपके आँचल का किनारा भी नहीं
897
तेरा उठने का इशारा तो समझते हैं हम
पर तेरे प्यार की सौग़ात अभी आधी है
898
तेरा दर छोड़कर जाने का कभी नाम न लूँ
यों पिला दे कि कहीं और सुबह-शाम न लूँ
899
तेरा दिल तो धड़कता रहा
तू भले ही था चुप, बेरहम !
900
तेरा प्यार मिल भी जाये, तेरा रूप मिल न पाता
जो हज़ार बार मिलते, यही इंतज़ार होता
901
तेरी अदाओं का हुस्न तो हम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
मगर कुछ अपने भी प्यार के ग़म छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
902
तेरी आँखों से तेरे दिल का था कितना फ़ासिला !
पर यहाँ एक उम्र पूरी हो गयी चलते हुए
903
तेरी ख़ुशबू से है तर बाग़ का पत्ता-पत्ता
क्यों न फिर हमको हरेक फूल पे प्यार आ जाये !
904
तेरी तड़पन समझ सकेगा, गुलाब !
कोई इस दर्द का मारा तो हो !
905
तेरी तरह बोली नहीं यह भी, प्यार जताकर देख लिया
हमने तेरी तस्वीर को भी सीने से लगाकर देख लिया
906
तेरी तिरछी अदाओं पर जिन्हें मरना नहीं आता
उन्हें इस ज़िंदगी से प्यार भी करना नहीं आता
907
तेरी दुनिया थी अलग, तेरे निशाने थे कुछ और
क्या हुआ, हम जो घड़ी भर को कभी मिल बैठे !
908
तेरी बेरुख़ी ने मुझको ये हसीन ग़म दिया है
मेरा दिल जलानेवाले ! तेरा लाख शुक्रिया है
909
तेरे आँचल का मिल गया है कफ़न
अब तो मरने का हमको ग़म न होगा
910
तेरे चाहने से क्या हो, मेरा दिल ही है कुछ ऐसा
इसे चैन उम्र भर में, कभी है, कभी नहीं है
911
तेरे छूते ही तड़प उठता है साँसों का सितार
अपनी धड़कन मेरे दिल में भी उतर जाने दे
912
तेरे जाने से क्या बीतेगी मुझ पर
जो बेचैनी अभी से बढ़ गयी है !
913
तेरे दिल में तो बसी है, ये महक गुलाब की ही
तू भले ही अब नज़र में, कभी है, कभी नहीं है
914
तेरे नाम की है ख़ूबी कि गुलाब ! हर सुबह को
किसी बेरहम ने दिल में, तुझे याद तो किया है
915
तेरे प्यार में है पहुँच गया मेरा दिल अब ऐसे मुक़ाम पर
कि न बढ़ सके, न ठहर सके, न पलट सके, न निकल सके
916
तेरे वादों पे अगर एतबार आ जाये
यों पलटकर न कोई बार-बार आ जाये
917
तेरे हर बोल पर हम तो मरते रहे, तुझको भायी न कोई तड़प प्यार की
हमसे मोड़े ही मुँह तू रही, ज़िंदगी ! छोड़ भी जान, अब अपने घर जायँ हम
918
तेरे हार में थे यों तो कई फूल रंगवाले
ये गुलाब पर कहाँ थे मुझे जोड़ने के पहले !
919
तोड़ ले जाये कोई चुपके से डाली से गुलाब
आ चुके हैं तंग हम काँटों की दीवारों से आज
920
तोड़ ले जायेगा कोई तुझको दम भर में, गुलाब !
प्यार के ये रंग होंगे बेअसर, समझे हैं हम
921
था फ़ासिला चार ही अंगुल का, हाथों से किसीके आँचल का
वे सामने पर आये न कभी, सजने ही में रात तमाम हुई
922
था लिखा क़िस्मत में तो काँटों से हरदम जूझना
कोई दिल को दो घड़ी फूलों में उलझाये तो क्या !
923
था वही बाग़, वही फूल, वही तुम थे, मगर
फिर बहारों से मुलाक़ात हमारी कब थी !
924
थीं गुलज़ार ये बस्तियाँ जिनके दम से
गये वे कहाँ बेरहम धीरे-धीरे !
925
थे आप और आपकी दुनिया भी थी, मगर
होता नहीं जो मैं, ये तमाशा नहीं होता
926
थे उनकी आँखों में आँसू ही बस हमारे लिये
नज़र से और कहीं बिजलियाँ गिराया किये
927
थे और बहाने नहीं आने के सैकड़ों
कहते हो–‘हमें क्यों न बुलाते हो’, ये क्या है !
928
थोड़ा पी लेते जो तलछट में ही छोड़ा होता
आपने हमसे कभी रुख़ भी तो जोड़ा होता !