ghazal ganga aur uski lahren
1668
शराब आख़िरी घूँट तक पी चुके हम
ये प्याला जो हाथों से छूटे तो छूटे
1669
शराब हुस्न की सबको पिला रहे वे, मगर
हमें कुछ और नज़र से पिलाये जाते हैं
1670
शरारत की हँसी आँखों में दाबे, नासमझ बनती
मेरी चुप्पी पे उसकी छेड़खानी याद आती है
1671
शर्त रहती है किसे याद बहारों की, गुलाब !
छोड़िए जो भी कही, जो न कही, अपनी जगह
1672
शर्त है प्यार की एक ही
ख़ुद तड़पिए तो तड़पाइए
1673
शाम झुकती है इन लटों की किसपर ?
कौन वह ख़ुशनसीब होता है !
1674
शायद किसीमें प्यार की धड़कन भी सुन पड़े
हर फूल में एक शोख़ नज़र देख रहे हैं
1675
शुक्र है, आप न लाये कभी प्याला मुझ तक
मेरी आदत थी बुरी, पीके बहक जाने की
1676
शुरू में तो दो-चार थे सुननेवाले
मगर बढ़ते-बढ़ते सभा बन गयी है
1677
शेर ये छू उनके होंठों के गुलाब
सादगी में भी ग़ज़ब ढाया किये
1678
शेर वैसे तो कुछ भी नहीं
जड़ गया तो नगीना हुआ
1679
शोख़ियाँ, पर वे आईने में कहाँ !
उनकी हरदम करे नक़ल, तो करे
1680
शौक़ यारों का जो बदला, सुरों की महफ़िल में
कौवा कोयल को हटा तान के सीना आया
1681
सँभाली होश की पतवार बहुत हमने, मगर
पहुँचके नाव किनारे पे डगमगा ही गयी
1682
सनद और क्या उनसे पाते, ‘गुलाब’ !
‘यथा नाम गुण भी तथा’ कह गये
1683
सब उसीका प्रसाद जीवन में
विष भी आया है तो ग्रहण कर लो
1684
सब हाथ मल रहे हैं खड़े, और ज़िंदगी
उलझाके हर नज़र में नज़र, डूब रही है
1685
सबसे आँखें तो चार करते हैं
दिल में बस उनको प्यार करते हैं
1686
सभी के ख़ून की रंगत तो लाल ही है, मगर
वो रंग और ही कुछ है कि जो गुलाब बना
1687
सभी को एक ही चितवन से कर दिया ख़ामोश
यहाँ थे लोग भी क्या-क्या सवाल कर लाये !
1688
सभी को एक ही चितवन से कर दिया मदहोश
सभी को एक ही प्याले से बरगलाया किये
1689
सभी तरफ़ है अँधेरा, कहीं भी कोई नहीं
भरम ही मन का है मेरा, कहीं भी कोई नहीं
1690
समझ ने आपकी जाने समझ लिया है क्या !
ज़रा ये फिर से तो कहिए कि क्या समझते हैं
1691
समझ लें प्यार भी हम उस नज़र की शोख़ी को
मगर ये अपने भरम के सिवा कुछ और नहीं
1692
समझता है जिसे ख़ुशबू, गुलाब ! तू अपनी
वो एक हसीन वहम के सिवा कुछ और नहीं
1693
समझना चाहते उसको तो समझ लेते आप
ग़ज़ल में प्यार भी ताने से कोई दूर न था
1694
समझे न दिल की बात इशारों को देखकर
देखा था उनकी ओर बहारों को देखकर
1695
सर झुका लेते हैं अब कुछ सोचकर
नाम सुनकर जो तड़प जाया किये
1696
सर पटकती है शमा लाश पे परवाने की
कोई पूछो भी तो उससे कि जलाया क्यों था
1697
सर पे काँटे भी बड़े शौक़ से रखते हैं गुलाब
तख़्तपोशी तो बिना ताज नहीं होती है
1698
सर हथेली पे लेके बैठे हैं
कुछ कहे तो कोई लगाव के साथ
1699
सवेरे-सवेरे गये छोड़कर वे
नहीं मन से अब भैरवी छूटती है
1700
सही है, आपने देखा नहीं गुलाब का फूल
कभी हम आपको झूठा बता नहीं सकते
1701
सही है, ठीक है, सच्चे हो तुम्हीं, हम झूठे
बहाना है तो बहाने की बात कौन करे !
1702
सही है, ठीक है, हमने ये ग़म सहे ही नहीं
कहें भी क्या कि जो कहने को कुछ रहे ही नहीं
1703
सही है, देखके हमको वे मुस्कुरा बैठे
इसीपे अब जो कोई, क्या-से-क्या, कहे तो कहे
1704
साँस की हर धड़कन में छिपी एक बेचैनी थी आठ पहर
हमने किसीकी याद को अपने दिल से भुलाकर देख लिया
1705
साँस में फूल-से महकने लगे
वे जो परदे में आके बैठ गये
1706
साज़ क्यों बज नहीं पाता है, कोई बात भी हो !
आज क्यों जी भरा आता है, कोई बात भी हो !
1707
साज़ बजता भी है, आवाज़ नहीं होती है
पर ये चुप्पी भी बिना राज़ नहीं होती है
1708
साज़ यह छेड़ रहा कौन है, हमारे सिवा !
तेरी महफ़िल में बता, कौन है हमारे सिवा !
1709
साज़ सभीने छेड़ा, लेकिन
सुर में हमीं रह पाये होंगे
1710
साज़ों को ज़िंदगी के बिखरना नहीं था यों
कुछ तो हुई थी भूल किसीकी सँभाल में
1711
साथ छूटा है हरेक प्यार के राही का जहाँ
एक इस राह में ऐसा भी शहर आता है
1712
साथ रहके भी न कह पाये कभी दिल की बात
रह गयी प्यार छिपाये, हया की मारी नज़र
1713
साथ हरदम भी बेनक़ाब नहीं
ख़ूब परदा है यह ! जवाब नहीं
1714
सामने उनके चुप हैं ‘गुलाब’
कुछ भी कहिए तो शरमाइए
1715
सामने उनके मुँह सिये हैं ‘गुलाब’
प्यार कितना ग़रीब होता है !
1716
सामने नज़रों के आना उनसे बन पाता नहीं
बन गये थे सौ बहाने दिल में आने के लिये
1717
सारी दुनिया की है ख़बर हमको
एक अपनी ख़बर नहीं मिलती
1718
सारी दुनिया पे कहर ढा देना
ख़ूब था तेरा मुस्कुरा देना
1719
सारे उपवन पे छाये गुलाब
गंध कब किसके रोके, रही !
1720
सितारों से आगे बढे जा रहे हैं
निगाहों पे किसकी चढ़े जा रहे हैं !
1721
सिर्फ आँचल के पकड़ लेने से नाराज़ थे आप !
अब तो ख़ुश हैं कि यह दुनिया ही छोड़ दी हमने
1722
सिर्फ सुर-ताल मिलाने से कुछ नहीं मिलता
तार दिल के भी मिलाओ कभी झंकार के साथ
1723
सिवा गुलाब के रंगत है किसकी लाल यहाँ
बहुत हैं देखे तपाये हुए, सताये हुए
1724
सिवा तुम्हारे कोई मन में दूसरा न रहे
भले ही थोड़ा-सा दुनिया से प्यार हो, तो हो
1725
सिवा मेरे, भगीरथ है कौन हिंदी-ग़ज़ल-गंगा का !
न्याय तो होगा कभी, दूध क्या, पानी क्या है !
1726
सुनता हूँ दिल में और भी एक दिल की धड़कनें
मैं होके अकेला भी अकेला नहीं होता
1727
सुनते नहीं हैं पाँव की आहट कहीं से हम
बाज़ आये उनके प्यार की ऐसी ‘नहीं’ से हम
1728
सुना है, आपने हमको किया था याद कभी
कसक-सी दिल में कहीं बार-बार होती रही
1729
सुना है, तुमने उगाये हैं पुतलियों में गुलाब
हमें भी पास बुलाओ कि हम भी देख सकें
1730
सुबह आयेगा कोई पोंछने आँसू भी, ‘गुलाब’ !
रात जिस हाल में जाती है, गुज़र जाने दे
1731
सुबह को और, शाम को कुछ और
हम नमाज़ी भी हैं, शराबी भी
1732
सुबह जो एक भी मिलती है ज़िंदगी की हमें
तमाम उम्र की इस बंदगी से भारी है
1733
सुर्ख़ बादल जो उमड़ आये थे आँखों में कभी
बनके आँसू वही बहते हैं, हम तो चुप ही हैं
1734
सूरतें एक-से-एक थीं
हम तो उनको ही देखा किये
1735
सैकड़ों छेद हैं इसमें, मालिक !
अब ये प्याला ही दूसरा देना
1736
सैकड़ों प्यार की दुनिया तबाह करके ही
एक इन्सान की तक़दीर बनायी जाती
1737
सो न जाये कोई, चुप, करवटें बदलता हुआ
आख़िरी प्यार की है रात, क़रीब आ जाओ
1738
सोया किसीके रेशमी आँचल की छाँह में
बीमार है अच्छा कि जो अच्छा नहीं होता
1739
सौ ऐब हैं मुझमें न कोई इल्मो-हुनर है
ज़र्रे को आफ़ताब किया, तेरी नज़र है