ghazal ganga aur uski lahren

1740
हँसके देखें गुलाब को यों आप
क्यों उसे प्यार का वहम न होगा !
1741
हँसके बहला भी लिया, रूठके तड़पा भी दिया
हम हैं मुहरे तेरी बाज़ी के, हमारा क्या है !
1742
हँसने की बात और है, रोने की बात और
पत्थर के दिल में फूल खिलाया न जायगा
1743
हँसी तो होंठों पे लाओ कि हम भी देख सकें
कुछ ऐसे प्यार दिखाओ कि हम भी देख सकें
1744
हँसी है आँखों की ऐसी कि आईना भी मात
अब उनको दूध से कोई धुला कहे तो कहे
1745
हज़ार दर्द हो दिल में सुनेगा कौन, ‘गुलाब’ !
तुम्हारी आँखों से आँसू अगर बहे ही नहीं
1746
हज़ार पाँव लड़खड़ाये ज़िंदगी के, मगर
चलते ही आये हैं उन चितवनों की छाँह तले
1747
हज़ार प्यार चकोरी को चाँद से है, मगर
घटा जो चाँद को ढँक जाय, क्या करे कोई !
1748
हज़ारों थे वादे, हज़ारों थीं कसमें
मगर सब भुलाकर चला जा रहा है
1749
हज़ारों बार जिगर में समा चुके हैं, मगर
वे अजनबी-से ही लगते रहे हैं सारी रात
1750
हट गयी चाँद की आँखों से झिझक पिछली रात
काँपती झील के दर्पण में जो हुआ सो ठीक
1751
हटा भी लो परदा ज़रा सामने से
तुम्हें देख लें भर नज़र चलते-चलते
1752
हटा रुख़ से परदा न बेगानेपन का
कोई रह गया उम्र भर मिलते-मिलते
1753
हथेलियों में हमारी है चाँद पूनम का
किसीकी शोख़ लटों में उतर गयी रात
1754
हदें तो प्यार ने दुनिया की तोड़ दी हैं, मगर
बहुत है आप भी नाज़ुकमिज़ाज, टूट न जाय
1755
हम अक्स हैं तेरे आईने के, कभी तो बढ़कर गले लगा ले
रहे हों ख़ामोश, प्यार की पर हमारे दिल में कमी नहीं है
1756
हम अगर कुछ नहीं कहते तो कोई बात नहीं
प्यार आँखों ने जताया है, आप चुप क्यों हैं !
1757
हम अपनी उदासी का असर देख रहे हैं
ख़ुद आयें हैं चलकर वे इधर, देख रहे हैं
1758
हम अपने को भी उनकी धड़कनों में देख लेते हैं
उन्हींके हम हैं, वे हमको भले ही दूसरा समझें
1759
हम अपने मन का उन्हें देवता समझते हैं
पता नहीं है कि हमको वे क्या समझते हैं
1760
हम इधर हैं बेक़रार, है उधर भी इंतज़ार
पर नज़र के फ़ासिले कम न हों तो क्या करें !
1761
हम उनकी बेरुख़ी को ही हमेशा प्यार क्यों समझें !
कभी तो मुस्कुरा देते, तबीयत ही बहल जाती
1762
हम उनके प्यार को समझें तो किस तरह समझें !
कभी नज़र में, कभी दिल में, दिल के पार कभी
1763
हम उनके प्यार में जगते रहे हैं सारी रात
ख़ुद अपने आप को ठगते रहे हैं सारी रात
1764
हम उनको अपना बना लें, कभी वो खेल तो हो
सहज है आँखों का मिलना, दिलों का मेल तो हो
1765
हम उन्हें अपना तड़पना भी दिखायें कैसे !
दिल जो टूटे भी तो आवाज़ नहीं होती है
1766
हम उन्हें कैसे सुनायें दिल की बात !
कह रहे हैं– ‘बोल पर सरगम के आ’
1767
हम उसीके हैं, उसीके हैं, उसीके हैं, सदा
वह भी समझे हमें अपना मगर आसान नहीं
1768
हम ऐसे होश से बाज़ आये, दूर-दूर हों आप
ये बेसुधी ही भली है कि हैं गले से गले
1769
हम कब तक यों दूर रहेंगे, आपने कुछ तो सोचा होगा !
प्यार का क्या मतलब निकलेगा ! आख़िर इस दिल का क्या होगा !
1770
हम कहाँ और कहाँ आपसे मिलने का ख़याल !
किसी दुश्मन ने ये बेपर की उड़ायी होगी
1771
हम किनारे पर तो आ पहुँचे, मगर
धार में डूबें, ये हसरत रह गयी
1772
हम किनारे से दूर जा न सके
एक चितवन बँधी थी नाव के साथ
1773
हम किसी और से क्या कहें !
जब ये क़िस्मत ही छलती रही
1774
हम खड़े तो रहे प्यार की राह में, देखकर भी न देखें जो वे, क्या करें !
सर दिया काटकर भी तो बोले यही- ‘खेल है यह पुराना, नहीं चाहिए’
1775
हम खड़े हैं लहर पे बुत की तरह
और बहते हैं किनारे, क्या ख़ूब !
1776
हम ख़तावार नहीं दिल के बहक जाने के
ये कगार आप ही ढहते हैं, हम तो चुप ही हैं
1777
हम ख़ुद को उन आँखों में दिखायें भी किस तरह !
हर देखनेवाले ने कहा ‘और ही कुछ है’
1778
हम खोज में उनकी रहते हैं, वे हमसे किनारा करते है
फूलों में हँसा करते हैं कभी पत्तों में इशारा करते हैं
1779
हम ग़ज़ल में उसीको उतारा किये
टीस-सी दिल में जो, रात, होती रही
1780
हम चाहते हैं प्यार तेरा देख ले दुनिया
यह भी है पर ख़याल, कोई देखता न हो
1781
हम जिनके लिये जूझे लहरों से, जब न वे ही
नज़रों में अब किनारा हो भी अगर, तो क्या है !
1782
हम ज़िंदगी के खेल से उठकर कभी भागे नहीं
यों तो सदा बनता रहा नक्शा हमारी मात का
1783
हम जिसे अपना समझ लें वो कोई और ही है
यों तो करने को हज़ारों से बात करते है
1784
हम डाँड़ चलाते है, तुम पार लगा देना
यह काम हमारा था, वह काम तुम्हारा है
1785
हम तेरे प्यार की एक धुन को तरसते ही रहे
कोई यों रूठ न जाता है, कोई बात भी हो !
1786
हम तो ख़ुश हैं कि इस बिगड़ने में
कुछ तो क़िस्मत हमें बना ही गयी
1787
हम तो नहीं होंठों से कहेंगे– ‘काट ली क्यों आँखों में रात !’
पूछ लो अपने आप से ख़ुद ही—‘अब ये कहाँ पहुँची है बात ?’
1788
हम तो मरते हैं इस झूठ पर
उम्र भर कोई छलता रहे
1789
हम तो मानें जो बरस जायें वे आँखें भी, ‘गुलाब’ !
तेरे आँसू की ये बरसात अभी आधी है
1790
हम तो हरेक सवाल पे देते रहे हैं जान
अब क्यों रहे किसीको शिक़ायत जवाब की !
1791
हम न मानेंगे कभी दिल में भी उनके हैं गुलाब
रंग आँखों में भले ही हज़ार आ जाये
1792
हम न रहे तो कौन भला ये शोख़ अदायें देखेगा !
बाग़ की सब रंगत है हमींसे, फूल भले ही हज़ार हुए
1793
हम नहीं रहे तो क्या बहार मिट गयी !
बाग़ था छिपाये हुए और सौ गुलाब
1794
हम पलटकर न कभी देखते दुनिया की तरफ़
आपने बीच का परदा तो हटाया होता
1795
हम भी आँखें बिछाये बैठे थे
एक नज़र इस तरफ़ भी की होती
1796
हम भी क्या याद करेंगे दिल में !
आ गये दिल से तंग, अच्छा है
1797
हम भी लगी जो आग उधर, देख रहे हैं
यों तो न देखना था, मगर देख रहे हैं
1798
हम भी सीने में धड़कता हुआ कुछ रखते थे
दो घड़ी रुकके कभी हाल तो पूछा होता !
1899
हम यों भी कभी प्यार की ठोकर में जी गये
कुल उम्र एक जैसे घड़ी भर में जी गये
1800
हम लेके इसे छाना किये हर जगह की ख़ाक
यह दिल कहीं भी चैन न पाये तो क्या करें !
1801
हम समझते थे कि सब कुछ हैं हमीं
मर के यह निकला कि हम कुछ भी नहीं
1802
हम सुरों में सजा रहे हैं उसे
दर्द जो ज़िंदगी से मिलता है
1803
हम हज़ारों ही जाल फेंका किये
ज़िंदगी पर नज़र फिरा ही गयी
1804
हम हैं आज़ाद सदा और बँधे भी हरदम
तुम भी ठीक अपनी जगह, हम भी सही अपनी जगह
1805
हम हैं कि जी रहे हैं, हरेक झूठ को सच मान
वर्ना जो सच कहें, तेरे वादों में दम नहीं
1806
हमको आँखें भी उठाने की मनाही थी अगर
आपने ख़ुद को सितारों से सजाया क्यों था !
1807
हमको आता है किसी बात पे रोना भी, मगर
उनको बस हँसना ही आता है, कोई बात भी हो !
1808
हमको कभी दर्शन तो मिले
वे भी, सुना, रहते हैं यहीं
1809
हमको ख़ुशबू तो उन आँखों की मिली है हरदम
प्यार अगर मिल नहीं पाया है, कोई बात नहीं
1810
हमको तड़पता देखके भी क्या तू ये नज़र मोड़े ही रहेगा !
लाख है पत्थर, दिल में मगर कुछ प्यार का भी लवलेश तो होगा
1811
हमको तलछट मिला अंत में
वह भी औरों से छीना हुआ
1812
हमको तूफ़ान के थपेड़ों से डर क्या !
नाव यह रही है सदा बीच में भँवर के
1813
हमको तो डर ही क्या है, उन्हींको हँसेंगे लोग !
यह ज़िंदगी का साज़ कहीं बेसुरा न हो
1814
हमको पता है ख़ूब, नहीं आँसुओं का मोल
पानी में फिर भी आग लगाने चले हैं हम
1815
हमको पानी ही पिलाया है, कोई बात नहीं
कुछ नशा ऐसे भी आया है, कोई बात नहीं
1816
हमको भूली है नहीं याद घड़ी भर उनकी
देखें, अब कब वे हमें पास बुला लेते हैं
1817
हमको भूलोगे नहीं, सच है, मगर कहते वक़्त
अपना चेहरा भी तो आईने में देखा होता !
1818
हमको सूरज-सा कभी देखा था उठते आपने
अब हमारे डूब जाने का भी मंज़र देखिए
1819
हमने काग़ज़ पर उतारी हैं अदायें आपकी
चितवनों की शोख़ियाँ होंगी कभी ये कम नहीं
1820
हमने ग़ज़ल का और भी गौरव बढ़ा दिया
रंगत नयी तरह की जो भर दी गुलाब में
1821
हमने ग़ज़लों में है रख दिया
ज़िंदगी भर का लब्बो-लबाब
1822
हमने छेड़ा जहाँ से तेरे साज़ को, कोई वैसे न अब इसको छू पायेगा
तेरे होंठों पे लहरा चुके रात भर, सोच क्या अब जिये चाहे मर जायँ हम
1823
हमने जिस ओर भी रक्खे थे बेसुधी में क़दम
तूने उस ओर ही मंज़िल का रुख़ सुधार लिया
1824
हमने तो खेल-खेल में ख़ुद को लुटा दिया
अच्छा नहीं था खेलना ऐसे किसीके साथ
1825
हमने देखा है किनारा किसीके आँचल का
जब कहीं कोई किनारा न नज़र आता है
1826
हमने देखी न उनकी झलक आज तक
और हरदम मुलाक़ात होती रही
1827
हमने धरती पे सिसकते हुए देखें हैं गुलाब
मालियो ! बाग़ की हालत कभी ऐसी तो न थी !
1828
हमने पायी है वही टूटते दिल की तस्वीर
ज़िंदगी ! चाँद-सितारों में तुझको देख लिया
1829
हमने माना इसी मंज़िल को तरसते थे फूल
पर बहारों की भी सूरत कभी ऐसी तो न थी !
1830
हमने माना कि खिल न पाये, गुलाब !
दिल तो ख़ुशबू से भर दिया तुमने
1831
हमने माना कि खिल रहे हो, गुलाब !
सर पे काँटों को भी वहन कर लो
1832
हमने माना कि ख़ुशी आपको होती इससे
हैं मगर आपकी ख़ुशियों से हम तबाह बहुत
1833
हमने माना कि तुम हो हमारे, याद करते रहोगे हमेशा
दूर जाने की बातें हैं पर ये, पास आने की बातें नहीं हैं
1834
हमने माना कि तुम्हारे सिवा नहीं है कोई
फिर ये प्याला, ये शराब और ये महफ़िल क्या है !
1835
हमने माना कि पास हो हरदम
क्यों झलक उम्र भर नहीं मिलती !
1836
हमने माना कि प्यार है हमसे
मुँह पे लाओ तो कोई बात बने
1837
हमने माना कि बसे आपके दिल में थे ‘गुलाब’
आपने उनको मगर इतना सताया क्यों था !
1838
हमने माना कि मौत है हर साँस
फिर भी हमको जिला रहा है कोई
1839
हमने माना कि हरेक रंग में मादक है रूप
रूप चितवन से जो झलका है कभी, और ही है
1840
हमने माना, बड़ी नाज़ुक है क़लम तेरी, गुलाब !
पंखड़ी भी कभी कर देती है तलवार का काम
1841
हमने यह समझा कि है प्याला हमारे वास्ते
उसने कुछ ऐसी अदा से मुस्कुराकर बात की
1842
हमने रख दी है छिपाकर इनमें दिल की आग भी
गुल नहीं होंगे कभी अब ये दिये जलते हुए
1843
हमने सूरत भी न देखी उनकी
दिल में रहते हैं हमारे, क्या ख़ूब !
1844
हमने हर मोड़ पर आँखों को बिछा रक्खा है
जाने किस ओर से सावन की फुहार आ जाये !
1845
हमने होंठों के चूमे गुलाब
किसको काँटों की परवाह है !
1846
हमपे चढ़ता है नशा जिसका, शराब और ही है
वह न शीशे में उतरती है न पैमाने में
1847
हमसे काँटे भी निकलवाये थे तलवों के कभी
आके मंज़िल पे सभी राह के ग़म भूल गये !
1848
हमसे किसीका प्यार छिपाया न जायगा
इतना हसीन बोझ उठाया न जायगा
1849
हमसे छिप सकती नहीं रंगत किसीके प्यार की
दिल तो धड़का है, निगाहों का इशारा हो, न हो
1850
हमसे तो ज़िंदगी की कहानी न बन सकी
सादे ही रह गये सभी पन्ने किताब में
1851
हमसे मिलिए तो आईने की तरह
प्यार टिकता नहीं दुराव के साथ
1852
हमसे यह बीच का परदा भी उठाया न गया
उनको बढ़ कर कभी सीने से लगाया न गया
1853
हमसे वो चुराता नज़र, ऐसा तो नहीं था
दुनिया की हवा का असर, ऐसा तो नहीं था
1854
हमसे शिक़ायत है कि कभी हम अपनी बात नहीं कहते हैं
उससे भी पूछो, रंगमहल में अपने, वह क्या करता होगा
1855
हमारा जान से जाना भी उनको खेल हुआ
मचल रहे हैं, इसे फिर से दिखाना होगा
1856
हमारा जुर्म यही था कि उनको देख लिया
इस एक बात की चर्चा हज़ार होती रही
1857
हमारा दर्द उन्हें दूसरे कहें तो कहें
हम अपने आप तो होंठों पे ला नहीं सकते
1858
हमारा दिल तो कहता है, उन्हें भी प्यार है हमसे
तड़प उसकी भले ही हमको दिखलायी नहीं जाती
1859
हमारा दिल तो धड़कता था आपके दिल में
छिपा था प्यार बहाने से, कोई दूर न था
1860
हमारा प्यार जी उठता, घड़ी मरने की टल जाती
जो तुम नज़रों से छू देते तो यह दुनिया बदल जाती
1861
हमारी ज़िंदगी ग़म के सिवा कुछ और नहीं
किसीके ज़ुल्मो-सितम के सिवा कुछ और नहीं
1862
हमारी बात को सुनकर वे हँसके बोल उठे–
‘सही है, बीते ज़माने की बात कौन करे !’
1863
हमारी बेकली का मोल क्या हो उनकी आँखों में
हमें तो आँसुओं में रंग भी भरना नहीं आता
1864
हमारी याद कब आयी कि जब हमीं न रहे
सुरों में प्यार के बहते हैं आप, क्या कहिए !
1865
हमारी रात अँधेरी से चाँदनी बन जाय
ज़रा-सा रुख़ तो मिलाओ कि ज़िंदगी बन जाय
1866
हमारी राह में आये हैं कुछ ऐसे भी मुक़ाम
वे बेनक़ाब हैं, मुँह को हमीं छिपाये हैं
1867
हमारे-तुम्हारे सिवा कौन है अब !
ये परदा घड़ी भर उठाओ तो क्या है !
1868
हमारे दिल का तड़पना ही रंग लाया है
नहीं तो क्या था भला आपकी कहानी में !
1869
हमारे दिल की ही कमज़ोरियों पे मत जाओ
हमारे प्यार का भी ज़ोर आजमाते चलो
1870
हमारे दिल पे भी गुज़रे हैं हादसे कितने
मगर वे ऐसे नहीं हैं कि हर किसीसे कहो
1871
हमारे पहले भी आये थे और लोग यहाँ
घटा उठी थी, मगर तार-तार होती रही
1872
हमारे प्यार का रोना है, कोई गीत नहीं
किसे है होश कि सुर और ताल है कि नहीं !
1873
हमारे प्यार का सपना भी आज टूट न जाय
सुरों को हाथ लगाने में साज़ टूट न जाय
1874
हमारे प्यार की यह ताज़गी न कम होगी
किसीके रूप की जादूगरी रहे न रहे
1875
हमारे बाग़ में उतरी हैं बिजलियाँ कैसी
हटो भी काली घटाओ ! कि हम भी देख सकें
1876
हमारे मन की उमंगों से खेलनेवाले !
हमारे प्यार की तड़पें भी देख ली होती !
1877
हमारे वास्ते कहना है जो ख़ुशी से कहो
मगर जो औरों से कहते हो वह हमींसे कहो
1878
हमारे सामने आओ कि हम भी देख सकें
नज़र नज़र से मिलाओ कि हम भी देख सकें
1879
हमारे सामने आने में भी झिझक थी जिन्हें
गले-गले हैं वही आज थोड़ी पीने से
1880
हमारे सुर से किसीका सिंगार हो, तो हो
खिलेंगे हम तो नहीं, अब बहार हो तो हो
1881
हमें अपने ही हाल पर छोड़ दें
चले जायँ अब अपनी घातों में आप
1882
हमें तो कहते हो,– ‘अपना ख़याल है कि नहीं ‘
तुम्हारे दिल का भी ऐसा ही हाल है कि नहीं !
1883
हमें तो ख़ूब है मालूम अपनी कमज़ोरी
भले ही हमको कोई देवता कहे, तो कहे
1884
हमें तो चैन से दुनिया ने बैठने न दिया
हुआ गुलाब का काँटों से ही सिंगार कभी
1885
हमें तो प्यार में मिलने से रहा चैन कभी
नहीं जो तुम हुए दुश्मन तो ज़माना होगा
1886
हमें तो हुक्म हुआ सर झुकाके आने का
नहीं ख़याल भी उनको नज़र उठाने का
1887
हमें देखते देख शरमा गये वे
नहीं यों किसीका भरम देखते हैं
1888
हमें दोस्तों ने भुला दिया, हमें वक़्त ने भी दग़ा दिया
उन्हें ज़िंदगी ने मिटा दिया जो निशान दिल पे उभर गये
1889
हमें मिटा तो रहे हो, मगर रहे यह याद
इन्हीं लकीरों की हद में तुम्हारा प्यार भी है
1890
हमें वो आँख दो परदे के पार देख सकें
जो सामने से यह परदा उठा नहीं सकते
1891
हमेशा दूर ही रहते हैं आप, क्या कहिए !
हमें भी आप जो कहते हैं –‘आप’, क्या कहिए !
1892
हर अदा उसकी क़यामत बनी है मेरे लिये
जानता भी हो इसे कोई, ज़रूरी तो नहीं
1893
हर एक नज़र के साथ महकते हैं सौ गुलाब
की बात जो भी आपने वह लाजवाब की
1894
हर क़दम पर, हर घड़ी हो साथ-साथ
सामने फिर भी न आना, ख़ूब हैं !
1895
हर क़दम, यह राह मुश्किल और है
सामने मंज़िल के मंज़िल और है
1896
हर क़दम, हर क़दम, हर क़दम
तेरे नज़दीक आते हैं हम
1897
हर नज़र ख़ामोश है, हर घर से उठता है धुआँ
यह शहर का शहर ही लूटा हुआ लगता है आज
1898
हर नये मौसम में खिलते हैं नये रंग में गुलाब
एक दुनिया को नहीं भाये तो क्या, भाये तो क्या !
1899
हर फूल में उन्हींकी रंगत मिली है हमको
जैसे कि बाग़ भर में हैं फिर गुलाब फूले
1900
हर शख़्स आईना है हमारे ख़याल का
मिलते गले-गले हैं हरेक आदमी से हम
1901
हर सुबह एक ताज़ा गुलाब
आपकी बेरुख़ी का जवाब
1902
हरगिज़, ‘गुलाब’ ! ऐसे न वे लगते गले से आपके
कुछ और ही जादू हुआ इस दर्द की सौग़ात का
1903
हरदम किसीकी याद में जलते रहे हैं हम
करवट ही ज़िंदगी में बदलते रहे हैं हम
1904
हरदम किसीके पाँव को आहट सुना किये
गिर-गिरके ज़िंदगी में सँभलते रहे हैं हम
1905
हरदम चिराग-दर-चिराग जोड़ते चलो
यह रात है ऐसी कि नहीं जिसका सहर है
1906
हरेक बात में कहते हो ‘कोई बात नहीं’
घड़ी-घड़ी में वही एक बात, चुप भी रहो
1907
हरेक बात में कुछ इशारा था उनका
ये नादान दिल कुछ समझ ही न पाया
1908
हरेक रंग में उनको देखा है हमने
उन्हींके जलाये-बुझाये हुए हैं
1909
हरेक लहर में क़यामत का शोर उठता था
किसी तरह से ये किश्ती निकालकर लाये
1910
हरेक शेर था टुकड़ा मेरे दिल का ही, मगर
यही सुना उन्हें कहते– ‘नशे की तान में है’
1911
हरेक सवाल पे कहते हो कि यह दिल क्या है
तुम्हीं बताओ, मेरे प्यार की मंज़िल क्या है
1912
हरेक साध ऐसे निकलती है मन से
कि जैसे कोई फुलझड़ी छूटती है
1913
हरेक सुबह आके पोंछता है, गुलाब ! कोई तुम्हारे आँसू
भले ही पाँवों का धूल पर कुछ निशान उसका नहीं कहीं है
1914
हवा में घुँघरू-से बज उठे थे, दिशायें करवट बदल रही थीं
किरन के घूँघट में मुँह छिपाकर तुम आ रहे थे, पता नहीं था
1915
हाथ डाँड़ों पर नहीं, क़िस्मत को कहते है बुरा
नाव ख़ुद है डूबती जाती, समंदर क्या करें !
1916
हाथ भर दूर ही रहता है किनारा हरदम
हमको यह डाँड़ चलाते ही हुई उम्र तमाम
1917
हाथ में उनके ही नाड़ी है, देखिए क्या हो !
जिनके छूने से ही धड़कन मेरी बढ़ जाती है
1918
हाय ! उस दूध की धोयी नज़र का भोलापन
सैंकड़ों ख़ून भी करके है बेगुनाह बहुत
1919
हाल सबका यही प्यार में
कुछ हमारा-तुम्हारा नहीं
1920
हुआ क्या जो सब उठके जाने लगे
अभी बात भी कह न पाये थे हम !
1921
हुआ प्यार का यह असर मिलते-मिलते
कि झुकने लगी है नज़र मिलते-मिलते
1922
हुआ है दिल तो घायल बेरुख़ी से ही उन आँखों की
जो थोड़ा प्यार भी उनमें कहीं होता तो क्या होता !
1923
हुआ है प्यार भी ऐसे ही कभी साँझ ढले
कि जैसे चाँद निकल आये और पता न चले
1924
हुई थी जिसे बोलने की मनाही
वो बात आज होंठों पे आयी हुई है
1925
हुए देखे बहुत दिन फिर भी अक्सर याद आती है
वो भोली-भाली सूरत और वे अच्छाइयाँ किसकी !
1926
हुक्म हाकिम का है—‘किताबों से
प्यार के लफ़्ज़ को हटा देना’
1927
हुस्न को और निखारा है आँसुओं ने मेरे
भुला न पाओगे इस दिल के तड़पने की अदा
1928
है अँधेरा ही अँधेरा सब ओर
ज़िंदगी फिर भी मुस्कुरा ही गयी
1929
है कोई इंतज़ार में हरदम
हम लिपटने की ताब तो लायें
1930
है घड़ी भर दिन अभी खिलते हैं क्या गुल, देखिए
यों तो हरदम लग रही है शह हमारे मात की
1931
है जो धोखा ही सरासर हरेक अदा उनकी
हमको यह प्यार का थोड़ा-सा भरम और सही
1932
है तो दुनिया बड़ी हसीन, मगर
यह किसी दिलजले का काम भी है
1933
हैं तो बुझते दिये मज़ार के हम
ज़िंदगी का सिंगार करते हैं
1934
है दिल की ज़िद तो यही, ख़ुद को भी लुटाके रहे
नज़र को ध्यान है इसका कि लाज टूट न जाय
1935
है धुआँ आज नदी पर, जलाके नाव अपनी
दिलजला कौन किनारों से अलग होता है !
1936
है न दुनिया में कहीं कोई पराया हमको
जो भी मिलता है उसे अपना बना लेते हैं
1937
है न मंज़िल कभी आख़िरी यह, है पड़ाव एक अगले सफ़र का
काफ़िले लाख छूटा करें पर, दिल कभी बेसहारा नहीं है
1938
है प्यार यह न खेल ही फूलों का जान लें
मुट्ठी में कसके आग को थामे हुए हैं हम
1939
हैं बिछी पलकें हमारी हर अदा पर आपकी
आप भी इस ओर थोड़ा मुस्कुराकर देखिए
1940
है ये किस शोख़ की गली, यारो !
लोग चलते कलेजा थामके हैं
1941
हैं वही आप, वही हम हैं, वही दुनिया है
बात कुछ और है थोड़ा-सा मुस्कुराने से
1942
है वही बाग़, वही तुम हो, वही हम हैं ‘गुलाब’
उड़ गया प्यार का वह रंग कहाँ, कौन कहे !
1943
है वही शोख़ हँसी मुँह पे शमा के अब भी
फ़र्क़ आया न कोई मौत से परवाने की
1944
है समझने की नहीं और न समझाने की
आँखों-आँखों वो अदा तेरे लिपट जाने की
1945
हैं सैंकड़ों सवाल, हज़ारों शिकायतें
होली पे उनको सामने पाने की देर है
1946
हैरत है, जब तक तक न मिले थे
हम क्या करते आये होंगे !
1947
हो गया क़ैद भले ही तेरे काँटों में गुलाब
बनके ख़ुशबू तो हज़ारों की नज़र तक पहुँचा
1948
हो जाय बेसुरी मेरी साँसों की बाँसुरी
इस ज़िंदगी को दर्द भी इतना न दीजिए
1949
हो न मंज़िलका कोई पता भी, तो क्या ! छोड़कर कारवाँ बढ़ गया भी, तो क्या !
राह वीरान, दिन ढल रहा भी, तो क्या ! चलनेवाला अभी दिल में हारा नहीं
1950
हो न मुश्किल ये तड़पना, मगर आसान नहीं
काम आसान है अपना, मगर आसान नहीं
1951
हों पँखुरियाँ गुलाब की ही, मगर
रंग उनकी गली से मिलता है
1952
हो फूल न तू, काँटा ही सही, कुछ बाग़ में अपनी साख तो रख
वह प्यार से चाहे गले न लगे, तुझे देखके घूँघट तान तो ले
1953
हो भले ही ज़िंदगी गुड़ियों का खेल
जो न घबरा जाय, वह दिल और है
1954
होंगे मोती कहीं उन आँखों में
हंस जमना के पार बैठे हैं
1955
होंठों पे न आये नाम मेरा, वह मुड़के मुझे देखे भी नहीं
मैं भी हूँ उसीका दीवाना, इस बात को दिल में जान तो ले
1956
होश इतना था किसे, उठके जो प्याला लेता !
हमने क़दमों पे तेरे रात निकलती देखी
1957
ह्रदय की पीर को गीतों में भर दिया हमने
प्यार जीता है जहाँ ज़िंदगी थी हार गयी