kagaz ki naao

चुरा चित अब कैसे वह भागे!
राह रोक उस छलिया के हम खड़े द्वार के आगे

झूठे हों अवरोध ज्ञान के जो चारों दिशि टाँगे

टूट न पायेंगे उससे ये प्रेम-भक्ति के धागे

माना नींद बड़ी गहरी थी, हम सुध-बुध थे त्यागे

पर कैसे छल पायेगा वह, सोये से जब जागे

चुरा चित अब कैसे वह भागे!
राह रोक उस छलिया के हम खड़े द्वार के आगे