kagaz ki naao

मोतियों की कमी नहीं थी यहाँ
तूने दामन बिछा दिया होता !

कौन डूबते भानु को, देखे हर्ष-विभोर !
ऋणी, अहेरी, वर, वधू, कवि, व्यभिचारी, चोर

तप-संयम के बिना मन, उड़ भी ले नभ बीच
जल-सा फिर भू पर गिरे, रहे नीच का नीच

पहले तो करते रहे मुझ पर करुणा-वृष्टि
चूक हुई क्‍या दास से, नाथ ! फिरा ली दृष्टि !

बिना क्रिया के मोल भला क्या शब्दों के भंडार का
एक लाख शब्दों से बढ़कर, एक परस है प्यार का