kagaz ki naao
शब्दों से ही सब कुछ पाया
जब की जिसकी चाह, इन्होंने पल में मुझे दिलाया
भावों से भावों को तोला
स्वर के हित स्वर का पट खोला
मेरे शब्दों की जय बोला
जो भी संमुख आया
पा लेना भी जिनका दर्शन
भाग्य समझते कोटि-कोटि जन
उनके सँग भी काटे कुछ क्षण
थी इनकी ही माया
इस कठोर मानस से मेरे
आते अश्रु इन्हींके प्रेरे
हार चरण-वंदन को तेरे
इनसे ही गुँथवाया
शब्दों से ही सब कुछ पाया
जब की जिसकी चाह, इन्होंने पल में मुझे दिलाया