kagaz ki naao
क्यों वह मेरे निकट न आया
तुलसी ने, मीरा ने जिसको सहज भाव से पाया?
पर उसका कुछ दोष नहीं था
वह तो मेरे निकट यहीं था
मेरा ही मन और कहीं था
भोगों में भरमाया
यदि मैं निज आस्था दृढ़ करता
क्या यों काल-शरों से डरता!
दिखती सदा मुझे इश्वरता
किये स्नेहमय छाया
अब भी चेत, मूढ़ मन मेरे!
क्यों तुझको भय-संशय घेरे?
वह तो सदा पास है तेरे
शब्दों बीच समाया
क्यों वह मेरे निकट न आया
तुलसी ने, मीरा ने जिसको सहज भाव से पाया?