kumkum ke chhinte

सीढ़ियों पर सीढ़ियाँ
चढ़ती ही जाती हैं पीढ़ियाँ।
पता नहीं
कोई कभी पहुँची भी कहीं
अथवा एक ही घर में,
ऊपर नीचे के गोल चक्कर में
घूमती रही हैं, जैसे
कोल्हू में जुते भैंसे।

1980