nao sindhu mein chhodi

अब तो स्वरमय प्राण हमारे
इन गीतों की नगरी में हम कभी न होंगे न्यारे

हमने शब्दयोग है साधा
जिसमें नहीं काल की बाधा
यहाँ श्याम के सँग है राधा

नित नव रूप सँवारे

यह अंतर का भावलोक है
जहाँ न दुःख, भय, रोग, शोक है
मिलन यहाँ कब सका रोक है

मरण लाख सिर मारे

जो भी इस पथ पर आयेगा
राग यही फिर-फिर गायेगा
स्वर बनकर जग में छायेगा

जीवन जो हम हारे

अब तो स्वरमय प्राण हमारे
इन गीतों की नगरी में हम कभी न होंगे न्यारे