nao sindhu mein chhodi
मेरे गीत, तुम्हारा स्वर हो
क्या फिर मेरे शब्दों की भी धूम न नगर-नगर हो!
युग से मौन पड़ी जो वीणा
रागरहित, धूसर, श्री-हीना
तुम चाहो तो तान नवीना
उससे क्या न मुखर हो!
हो रवीन्द्र या त्यागराज हो
बिना सुरों के व्यर्थ साज हो
गायक जब सहृदय समाज हो
गायन तभी अमर हो
मेरे गीत, तुम्हारा स्वर हो
क्या फिर मेरे शब्दों की भी धूम न नगर-नगर हो!