nao sindhu mein chhodi
कटे दिन काँवर ढोते-ढोते
जी करता, रखकर अब इसको कहीं चैन से सोते
गंगा के तट पर जा-जाकर
ले आते हम भर-भर गागर
पर क्या इस श्रम से जीवन भर
यदि न लगाये गोते
कंधों पर काँवर ढोते हैं
जाने स्वयं कहाँ होते हैं
प्रतिमा ही केवल धोते हैं
मन को कभी न धोते
जो भी पुण्य मिल गया थोड़ा
हमने उसे स्वार्थ से जोड़ा
सेवा में भी मोह न छोड़ा
यह होते, वह होते
कटे दिन काँवर ढोते-ढोते
जी करता, रखकर अब इसको कहीं चैन से सोते