nao sindhu mein chhodi

हम तो काँटे ही चुनते हैं
मिले फूल-फल उन्हें, लोग जिनकी पिकध्वनि सुनते हैं

जैसा अवसर वैसा गायें
श्रोता क्यों ताली न बजायें!
हम तो बस उनकी रचनायें

पढ़कर सिर धुनते है

तिकड़म, दलबंदी, विज्ञापन
दंभ, चाटुकारी, जन-रंजन
धन्य वही कवि इनसे प्रतिक्षण

जो ताने बुनते हैं

हम तो काँटे ही चुनते हैं
मिले फूल-फल उन्हें, लोग जिनकी पिकध्वनि सुनते हैं