nao sindhu mein chhodi
हमारे बीत रहे दिन कैसे!
आते देख वधिक को वन में काँप उठें मृग जैसे
मच जाती खलबली विपिन में ज्यों प्रसून संचय से
पतझड़ आते ही ज्यों तरु के पत्र सिहरते भय से
जाने कब दबोच लें आकर यम के काले भैंसे
अब तक तो बचते आये लुक छिपकर जैसे-तैसे
हमारे बीत रहे दिन कैसे !
आते देख वधिक को वन में काँप उठें मग जैसे