naye prabhat ki angdaiyiyan

दुनिया

दुनिया न भली है न बुरी है,
वह तो एक पोली बाँसुरी है
जिसे आप चाहे जैसे बजा सकते हैं,
चाहे जिस सुर से सजा सकते है;
प्रश्न यही है,
आप इस पर क्या गाना चाहते हैं!
हँसना रोना या केवल गुनगुनाना चाहते हैं!
सब कुछ इसी पर निर्भर करता है
कि आपने इसमें कैसी हवा भरी है,
कौन-सा सुर साधा है, —
संगीत की गहराइयों में प्रवेश किया है
या केवल ऊपरी घटाटोप बाँधा है;

यों तो हर व्यक्ति
अपने तरीके से ही जोर लगाता है,
पर ठीक से बजाना
यहाँ बिरलों को ही आता है;

यदि आपने सही सुरों का चुनाव किया है
और पूरी शक्ति से फूँक मारी है,
तो बाँसुरी आपकी उँगलियों के इशारे पर थिरकेगी,
पर यदि आपने इसमें अपने हृदय की धड़कन
नहीं उतारी है
तो जो भी आवाज़ निकलेगी,
अधूरी ही निकलेगी।

1983