naye prabhat ki angdaiyiyan

सबसे महान

आप कितने भी उँचे उठ जायें,
आपको अपने से ऊँची कोई पर्वतमाला
अवश्य दिखाई देगी,
कितनी भी पूर्णता पा लें,
दूसरे की सुंदरता और समृद्धि
आपकी आँखों में अवश्य गड़ा करेगी;
हो सकता है,
आप हिमालय के उच्चतम शिखर पर चढ़कर रुके हैं
पर क्‍या वहाँ भी
और लोग आपके पहले नहीं पहुँच चुके हैं;
यदि आप वायुयान और प्रक्षेपकों के सहारे
और ऊपर जाना चाहते हैं,
धरती की सीमा से निकलकर
सौरमंडल में घर बसाना चाहते हैं,
तो भी आगे चमकते हुए नक्षत्रों का समूह
आपको चुनौती ही देता रहेगा,
आप कितने भी ऊँचे उठ जायँ
आपका मन आपको अपूर्ण ही कहेगा।
इसलिए अच्छा यही हैं
कि जिस स्थिति में हैं, जहाँ भी हैं,
संतोष का अनुभव कीजिए,
लोग आपको ही सबसे महान समझें,
यह इच्छा ही त्याग दीजिए।

1983