naye prabhat ki angdaiyiyan

अनुवाद

सच कहूँ तो
मैंने कभी कोई स्वतंत्र रचना नहीं की है,
मैने केवल अनुवाद किया है;
सदा किसी दूसरे के भावों और विचारों को ही
अपने शब्दों में उतार लिया है;
यही नहीं
एक छोटे-से अज्ञात कवि को ही
मैंने सदा अपना प्रतिमान बनाया है,
उसकी सरल, सामान्य अनुभूतियों को ही
अपनी वाणी का परिधान पहनाया है,
यह भी सच है,
कि सिवा मेरे
यहाँ उसको पूछनेवाला और कोई नहीं था,
न मंच पर उसका यशोगान होता था,
न इतिहास में ही उसका उल्लेख कहीं था,
फिर भी आश्चर्य है
कि मेरा अनुगायन
लोग बड़े प्यार से सुनते हैं,
शब्द-शब्द पर मुझे साधुवाद देते हैं;
पंक्ति-पंक्ति पर अपना सिर धुनते हैं;

क्या यह इसीलिए है
कि मेरे स्वरों में मूल के प्रति ईमानदारी झलकती है !
पारदर्शी शीशे में रखी प्रतिमा की-सी
उसकी हर भंगिमा
मेरी रेखाओं में अँकती है !

इससे कोई अंतर नहीं पड़ता
कि मैंने किसी बड़े ज्योतिष्पिड का चित्र
नहीं खींचा है,
इससे कोई अंतर नहीं पड़ता
कि मैने एक क्षुद्र रज-कण पर ही
अपना सारा स्नेह उलीचा है;
यदि मेरे हृदय में सच्चाई,
उँगलियों में कला
और जीवन में समर्पण है,
तो मेरी तुच्छतम अभिव्यक्ति भी
संसार के प्रत्येक व्यक्ति की भावना का दर्पण है।

1983