naye prabhat ki angdaiyiyan

काल

सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और विनाश का
एकमात्र कारण
काल स्वयं हमारी पकड़ में नहीं आता है,
इंद्रियों को उसकी झलक भी नहीं मिलती,
ज्ञान उसे छू भी नहीं पाता है,
फिर भी सोते-जागते
प्रत्येक क्षण वह हमारे साथ रहता है,
दृश्य जगत में जो कुछ भी घटित होता है,
सब में उसीका हाथ रहता है।
आकाश की तरह सभी ओर से
वह हमारे अस्तित्व को समेटे है,
दिशायें उसकी फैली हुई भुजायें हैं
जिनमें वह इस महासृष्टि को लपेटे हैं;
निखिल ब्रह्मांड को
वह अपनी गति पर नचाता है
उसकी सत्ता को अस्वीकार करते ही
संसार का भी लोप हो जाता है।
काल से परे क्‍या है
यह कौन बता सकता है!
कोई उसका अनुभव भी करे
तो शब्दों में नहीं ला सकता है।

1983