pankhuriyan gulab ki

सितारों से आगे बढ़े जा रहे हैं
निगाहों पे किसकी चढ़े जा रहे हैं !

न जिसके शुरू-आख़िरी के हैं पन्ने
किताब एक ऐसी पढ़े जा रहे हैं

जो सर फोड़ना ही रहा पत्थरों से
ये फूलों के दिल क्यों गढ़े जा रहे हैं !

उधर राह भी देखता होगा कोई
क़दम जिस तरफ़ ये बढ़े जा रहे हैं

‘गुलाब’ आज मिटने का ग़म है तो इतना
तेरे हाथ से अनगढ़े जा रहे हैं