pankhuriyan gulab ki

हमारा प्यार जी उठता, घड़ी मरने की टल जाती
जो तुम नज़रों से छू लेते तो यह दुनिया बदल जाती

उन्हींको ढूँढ़ती फिरती थीं आँखें जानेवाले की
न करते इंतज़ार ऐसे, किसीकी रात ढल जाती

हम उनकी बेरुख़ी को ही हमेशा प्यार क्यों समझें !
कभी तो मुस्कुरा देते, तबीयत ही बहल जाती

उन्हींको चाहते हैं अपने सीने से लगा लें हम
कि जिनकी याद आते ही छुरी है दिल पे चल जाती

वे दिन कुछ और ही थे जब गुलाब आँखों में रहते थे
बिना ठहरे ही डोली अब बहारों की निकल जाती