pankhuriyan gulab ki

उनका बदला हुआ हर तौर नज़र आता है
अब न पहले का वही दौर नज़र आता है

यों न झुकती थीं हमें देखके नज़रें उनकी
आज नज़रों में कोई और नज़र आता है

अक्स हम उनका उतारा किये हैं काग़ज़ पर
कीजिये जब भी ज़रा ग़ौर, नज़र आता है

इस बयाबान के आगे भी शहर है, ऐ दोस्त !
और, दो-चार क़दम और, नज़र आता है

कोई कोयल न तुझे ढूँढ़ती फिरती हो, गुलाब !
आज आमों पे नया बौर नज़र आता है