pankhuriyan gulab ki

उन्हें बेतकल्लुफ़ किया चाहता हूँ
ये क्या कर रहा हूँ ! ये क्या चाहता हूँ !

कभी पूछ भी लो कि क्या चाहता हूँ
तुम्हें चाहने की सज़ा चाहता हूँ

ज़रा अपने आँचल का साया तो कर लो
दिया हूँ, हवा से बुझा चाहता हूँ

रहूँ होश में जब ये परदा हटाओ
तुम्हीं में तुम्हें देखना चाहता हूँ

गुलाब आज यों बाग़ में कह रहा था–
‘तुझे मैं भी, ऐ बेवफ़ा ! चाहता हूँ’