pankhuriyan gulab ki

किसी बेरहम के सताये हुए हैं
बड़ी चोट सीने पे खाये हुए हैं

हरेक रंग में उनको देखा है हमने
उन्हींके जलाये-बुझाये हुए हैं

कोई तो किरन एक आशा की फूटे
अँधेरे बहुत सर उठाये हुए हैं

जहाँ चाँद, सूरज है, तारे हैं लाखों
दिया एक हम भी जलाये हुए हैं

गुलाब उनके चरणों में पहुँचे तो कैसे !
सभी ओर काँटें बिछाये हुए हैं