pankhuriyan gulab ki

अपना चेहरा भी किसी और का लगा है मुझे
आज दुश्मन की तरह आईना लगा है मुझे

मैं तेरे प्यार के क़ाबिल तो नहीं था, लेकिन
कुछ तेरे दिल में धड़कता हुआ लगा है मुझे

एक ख़ुशबू-सी ख़यालों में बसी रहती है
साथ हरदम है कोई ख़ुशनुमा, लगा है मुझे

यह भी ताक़त न रही, चार क़दम उठके चलूँ
हाय ! कब उनकी गली का पता लगा है मुझे !

पास आते ही निगाहों में खिल उठे हैं गुलाब
फिर कोई अपनी तरफ़ देखता लगा है मुझे