pankhuriyan gulab ki

कौन जाने उस तरफ़ कोई किनारा हो, न हो !
मिल भी जाओ आज, कल मिलना हमारा हो, न हो

रात भर जंगल-पहाड़ों में भटकता फिर रहा
है हमीं-सा चाँद भी क़िस्मत का मारा, हो-न-हो !

हमसे छिप सकती नहीं रंगत किसीके प्यार की
दिल तो धड़का है, निगाहों का इशारा हो, न हो

आज तो मिलती है उन आँखों की ख़ुशबू दूर से
क्या पता कल राह में यह भी सहारा हो, न हो !

यों तो शोभा बढ़ गयी इस बाग़ की तुझसे, गुलाब !
प्यार की शोख़ी मगर उनको गवारा हो, न हो !