pankhuriyan gulab ki
गंध बन कर हवा में बिखर जायँ हम, ओस बनकर पँखुरियों से झर जायँ हम
तू न देखे हमें बाग़ में भी तो क्या ! तेरा आँगन तो ख़ुशबू से भर जायँ हम
हमने छेड़ा जहाँ से तेरे साज़ को, कोई वैसे न अब इसको छू पायेगा
तेरे होंठों पे लहरा चुके रात भर, सोच क्या अब जियें चाहे मर जायँ हम !
घुप अँधेरा है, सुनसान राहें है ये, कोई आहट कहीं से भी आती नहीं
खाये ठोकर न हम-सा कोई फिर यहाँ, एक दीपक जला कर तो धर जायँ हम
तेरे हर बोल पर हम तो मरते रहे, तुझको भायी न कोई तड़प प्यार की
हमसे मोड़े ही मुँह तू रही, ज़िंदगी ! छोड़ भी जान अब अपने घर जायँ हम
रात काँटों पे करवट बदलते कटी, हमको दुनिया ने पलभर न खिलने दिया
आयेंगे कल नये रंग में फिर गुलाब, आज चरणों में उनके बिखर जायँ हम