prem vina

1
दिन बिछुड़े, निशि को मिले, निशि बिछुड़े जो, प्रात
हम-तुम बिछुड़े साँझ के, दिन को मिले न रात
2
अनजाने पट के निकट, अटक गया मन काँप
पूर्व-जन्म-स्मृति-सी, प्रिये! मिली मुझे तुम आप
4
एक वयस, रुचि एक रँग-रूप एक गुण-दोष
एक रेख सिंदूर से, कोसों दूर पड़ोस
4
कैसे मन माने, सतत पगध्वनि पड़ती कान
दर्शन को तरसा करें, बस पड़ोस में प्राण!
5
साँझ सवेरे ही मिलन, छिटपुट-सी दो बात
हम-तुम ऐसे ही मिले, जैसे दिन से रात
6
गये न पहले-से नयन, लिपट दृष्टि से लोल
मिले, खिले, सकुचे, झुके, उठे, बढ़े बेबोल
7
नयन पूर्व-अभ्यास-वश, देख उठाते हाथ
मिले, खिले, रोये, हँसे, मुड़े, गिर पड़े साथ
8
कुसुम-छड़ी-सी हो खड़ी, सुनते मेरा नाम
समुद मुड़ी, मुड़ रो पड़ी, बढ़ी न वामा, वाम
9
सिहर खड़ी प्रिय-पार्श्व में, जलमय पलकें मींच
पावक-रेखा-सी गयी, जावक-रेखा खींच
10
दूग झँपना बचपन बना, बिछुड़ न देखा मेल
प्रेम हुआ अपना, प्रिये! सपने का-सा खेल
11
झिझक, लाज, परिचय प्रथम, पुलकन, पहली प्रीत
कभी याद आता, प्रिये! बालापन का मीत?
12
खिले नयन, आनन झुका, पड़ी भ्रुवों में गाँठ
मन उड़ता, सीखा जहाँ प्रथम प्रणय का पाठ
13
वधू बना जो खेल में, बरबस जोड़ी प्रीत
जीवन-हार बनी, प्रिये! वह बचपन की जीत
14
सिहर चली मधु-सेज पर, काजल-रेखा खींच
तन फूलों के बीच है, मन शूलों के बीच
15
छठे-छमाहे, मास, दिन, घड़ी, एक पल, प्राण
कभी कसकती प्राण में, वह भूली पहचान
16
मिटी तुम्हारे हृदय से, ऐसे मेरी याद
जैसे सपना भोर का, दिन उगने के बाद