ravindranath:Hindi ke darpan me

आमार शोनार बांग्ला

आमार शोनार बांग्ला, आमि तोमाय भालोबासि
चिरदिन तोमार आकाश, तोमार वातास, आमार प्राणे बाजाय बाँशि उ माँ, फागुने तोर आमेर बने घ्राणे पागल करे,
मरि, हाय, हाय रे —
उ माँ अघ्राणे तोर भरा खेते आमि कि देखेछि मधुर हासि । ।

की शोभा, की छाया गो, की स्नेह, की माया गो —
की आँचल बिछायेछो बटेर मूले, नदीर कूले कूले ।
माँ, तोर मुखेर वाणी आमार काने लागे सुधार मतो,
मरि, हाय, हाय रे —
माँ, तोर बदन खानि मलिन होले, उ माँ आमि नयनजले भासि । ।

 

मेरा सोने का बंगाल

ओ स्वर्णिम बँगला माँ ! तुझको करता हूँ मैं प्यार
तेरे गगन, पवन से सुनता वंशी का गुंजार
फागुन में तेरे रसाल-वन,
सौरभ से पागल करते मन
माँ तुझ पर बलि जाऊँ
अनाघ्रात भी खेत धान के हँसते दिखें अपार

क्या ही शोभामय तरु-छाया,
क्या ही स्नेहमयी है माया !
वट-तरु-तल में, नदी-तटों पर !
बिछा दिया आँचल क्या सुंदर !
माँ तेरे स्वर से कानों में बहे सुधा की धार
माँ ! तुझ पर बलि जाऊँ
नयन सजल हों, मलिन दिखे यदि तेरा मुख सुकुमार

तोमार एइ खेलाघरे शिशुकाल काटिलो रे,
तोमारि धूलामाटि अंगे माखि धन्य जीवन मानि ।
तूइ दिन फुराले संध्याकाले की दीप जालिस घरे
मरि, हाय, हाय रे —
तखन खेलाधूला सकल फेले, उ माँ, तोमार कोले छूटे आसि । ।

धेनूचरा तोमार माठे, पारे जाबार खेयाघाटे,
सारा दिन पाखि-डाका छायाय ढाका तोमार पल्लीबाटे,
तोमार धाने-भरा आंगिनाते जीवनेर दिन काटे,
मरि, हाय, हाय रे –
उ माँ, आमार जे भाई तारा सबाई, उ माँ, तोमार राखाल तोमार चासि । ।

उ माँ, तोर चरणेते दिलेम एई माथा पेते —
दे गो तोर पायेर धूला, से जे आमार माथार माणिक होबे ।
उ माँ, गरीबेर धन जा आछे ताई दिबो चरणतले,
मरि, हाय, हाय रे –
आमि परेर घरे किनबो ना, आर, माँ, तोर भूषन ब’ले गलार फाँसि ।।

वह था तेरा ही क्रीडांगन,
जिसमें काटा मैंने बचपन
लिपट धूल-मिट्टी में तेरी,
धन्य हुई, माँ ! काया मेरी
दीप जला, दिन के छिपने पर,
क्या ही दीप्त किया तूने घर !
माँ ! तुझ पर बलि जाऊँ
खेल भुला मैं फिरा गोद में तेरी ही थक, हार

गो-चारण के खेत मनोहर,
पार-हेतु तरनियाँ घाट पर
जिनमें विहग-नाद हो प्रतिपल,
हाट-बाट छायावृत, शीतल
भरा धान से तेरा आँगन,
इन सब में ही कटता जीवन
माँ! तुझ पर बलि जाऊँ
तेरे कृषक और चरवाहे मेरा कुल परिवार

मस्तक तेरे चरणों पर नत,
पदरज लूँ सिर पर माणिकवत्
जो भी मुझ गरीब का है धन,
तेरे चरणों में है अर्पण
माँ ! तुझ पर बलि जाऊँ
पर-गृह से क्रय करूँ न अब, गलफाँसी वे गलहार