ravindranath:Hindi ke darpan me

असमाप्त

जीवने जत पूजा होलो ना सारा,
जानि हे, जानि ताऊ होय नि हारा ।

ये फूल ना फूटिते झरे छे धरनी ते
ये नदी मरूपथे हारालो धारा,
जानि हे, जानि ताऊ होय नि हारा ।।

जीवने आज उ याहा रयेछे पिछे,
जानि हे, जानि ताऊ होय नि मिछे

आमार अनागत, आमार अनाहत
तोमार बीना तारे बाजिछे तारा
जानि हे, जानि ताऊ होय नि हारा ।।

वह है नहीं अधूरी

पट हुए बंद , पूजा हुई नहीं पूरी
जानता हूँ, जानता हूँ, वह है नहीं अधूरी

फूल जो धरती पर गिरा रहकर अनखिला नदी जिसे सागर का कूल नहीं मिला
यात्रा जो लक्ष की मिटा न सकी दूरी जानता हूँ , जानता हूँ, वह है नहीं अधूरी

पिछड़े जो, विफल नहीं उनका भी जीवन
क्या न मैं भी पिछड़, प्रभु-कृपा से गया कवि बन
महकेगी मेरी भी कृति ज्यों कस्तूरी
जानता हूँ, जानता हूँ, वह है नहीं अधूरी