ret par chamakti maniyan

कोई कितनी भी आड़ क्‍यों न लगाये,
जन्म लेने वाले की मृत्यु निश्चय होती है,
इस नाटक के अंत में
सदा खलनायक की ही विजय होती है।
फिर भी यह जीवन दुःखांत नहीं है,
हमारी चेतना ऊपर से कितनी भी अशांत हो,
भीतर से अशांत नहीं है;
मृत्यु का जोर
केवल बाह्य रूपों पर ही चलता है,
वह अरूप और अनाम इसकी पकड़ से बाहर है
जो इन अनंत रूपों में ढलता है।
काल और कुछ नहीं करता
केवल नेपथ्य में बैठा-बैठा
पर्दा उठाता-गिराता है
हमारी दृष्टि से ओझल होने पर भी
खेल समाप्त नहीं होता,
चलता जात्ता है।