roop ki dhoop
प्रेरणा
चाँद की चाँदनी उतरती है
रूप की रागिनी उतरती है
झमझमाती सफेद कागज पर
काव्य की स्वामिनी उतरती है
सिंधु में यामिनी उतरती है
निर्वसन दामिनी उतरती है
ज्यों गगन की सघन गुफाओं से
नव उषा कामिनी उतरती है
रात ज्यों-ज्यों घनी उतरती है
प्राण में पैजनी उतरती है
भाव का वेग रुक नहीं पाता
घन-घटा सावनी उतरती है
अनकही, अनसुना उतरती है
अनबनी, अनमनी उतरती है
एक अनजान अनदिखी सुषमा
आज अपनी बनी उतरती है
1966