roop ki dhoop
वियोग
इस तरह रात बिताता हूँ मैं
जैसे काँटों में लोटता हो गुलाब
ज्यों तड़पती हो रेत पर मछली
ज्यों सलाखों पे सिक रहा हो कवाब
जैसे कोई दबाके मुट्ठी में
फूल की पंखुरियाँ मसल देता
जैसे कोई हरेक करवट पर
पीर को नीर-सा उथल देता
बाढ़ में बहते हुए घर पर बैठ
कोई जैसे बजा रहा हो सितार
जैसे नागिन के फन पे पाँव दबा
अपनी दुलहन से करे कोई प्यार
दो घड़ी के अजान मिलने का
हाय! कितना कठोर था परिणाम!
चिर-विरह की व्यथा लिये जीवन
अब अँगारों पे लोटता प्रतियाम
काल के क्रूर, कुटिल दीपक पर
प्रेम जलते पतंग का उल्लास
रूप की चाँदनी में यौवन का
आँसुओं से लिखा हुआ इतिहास
1966