roop ki dhoop

हिमालय

आयेगा नहीं काम सदाशय अपना
गांडीव सँभालो कि रहे भय अपना
अब वृद्ध हुआ माँग रहा सेवा-मुक्ति
प्रहरी जो सदा से था हिमालय अपना

तातार कि शक, हूण जो आये चढ़ के
सब दूर उड़े पत्र सदृश पतझड़ के
सौ बार हिमालय ने बचाया है तुम्हें
अब तुम भी हिमालय को बचा लो बढ़ के

1967