sab kuchh krishnarpanam
क्या है इस मन में!
द्वारों पर द्वार मिले
नित नव संसार मिले
चित्र सौ-हजार मिले
झिलमिल दर्पण में
आशा – अभिलाषायें
अनबोली भाषायें
पाकर भी क्या पायें
आकुल चुंबन में!
इंद्रधन्ष चूर – चूर
पास – पास, दूर – दूर
सदय कभी, कभी क्रूर
बदले क्षण-क्षण में
क्या है इस मन में!