sab kuchh krishnarpanam
फूल और काँटे
अच्छा है, हमने यहाँ आपस में बाँटे
फूलों से सजा लिये तुमने निज अंग
काँटे चुभने को दिये छोड़ मेरे संग
उनमें भी चुन-चुनकर नोकदार छाँटे
काँटों की चुभन ने जगाये मुझे रक्खा है
जीवन का स्वाद मैंने इनसे ही चक्खा है
खा जाते नहीं तो मुझे पथ के सन्नाटे
फूल और काँटे
अच्छा है, हमने यहाँ आपस में बाँटे
अगस्त 85