sab kuchh krishnarpanam
मिलेंगे फिर भी यदि जीवन में
क्या फिर मुझे देखकर कोई हलचल होगी मन में ?
नहीं रहा हो रूप सुनहला
वह यौवन-आकर्षण पहला
कुछ तो जी लेते हैं बहला
स्मृतियों के दर्पण में
जीवन-स्रोत गया कब बाँधा!
लाख लिपटकर रोये राधा
रह जाता है चुंबन आधा
मधुर मिलन के क्षण में
मिलेंगे फिर भी यदि जीवन में
क्या फिर मुझे देखकर कोई हलचल होगी मन में?