sab kuchh krishnarpanam
मेरे जाने की वेला है और न तुमने फूल सजाये
और न तुमने माला गूँथी और न तुमने दीप जलाये
खाली हाथों विदा करोगी।!
क्या कोई पाथेय न दोगी!
अब भी लज्जा में लिपटी क्या देख रही हो दायें-बायें!
कल यह देश अजाना होगा
लौट न इस पथ आना होगा
मिल पाऊँगा कल न तुम्हें मैं फिर यों ही बाँहें फैलाये
साध आज सब पूरी कर लो
मुझको निज बाँहों में भर लो
प्रिये! विदा-वेला में कोई गीत अधूरा क्यों रह जाये !
मेरे जाने की वेला है और न तुमने फूल सजाये
और न तुमने माला गूँथी और न तुमने दीप जलाये
जनवरी 85