sab kuchh krishnarpanam
मैंने रंग-रंग के फूल बिछाये हैं
जाने कौन तुम्हें भा जाये
सब सज-धज कर आये हैं
उधर मालती नयी-नयी है
इधर चमेली विकस गयी है
बेला कितनी मोहमयी है
हरसिंगार लहराये हैं
ये मन में या रहें नयन में
पूजा-गृह या केलिशयन में
देर न करना किंतु चयन में
सारे तपे-तपाये हैं
तार भले नीरव हो जाये
राग कभी मिटता न मिटाये
जब भी प्राण कंठ में आये
मैंने यहीं टिकाये हैं
मैंने रंग-रंग के फूल बिछाये हैं
जाने कौन तुम्हें भा जाये
सब सज-धज कर आये हैं