sab kuchh krishnarpanam
सब धरती की ही माया
जब जग ने ठुकराया मुझको, इसने गले लगाया
साँस साँस में सुरभि-समीरन
अँग-अँग में रसमय आलिंगन
मृण्मय यह चेतन की चेतन
जननी, सहचर, जाया
प्रात, गगन छूने को दौड़ा
साहस अतुल, बुद्धि-बल थोड़ा
साँझ, मुझे सबने जब छोड़ा
की इसने ही छाया
गत-आगत, जो नया-पुराना
रूप अमित इसका ही बाना
इससे चल, इसमें ही आना
क्या खोया ! क्या पाया !
सब धरती की ही माया
जब जग ने ठुकराया मुझको, इसने गले लगाया