seepi rachit ret

जितना प्यार तुम्हें करता मैं

जितना प्यार तुम्हें करता मैं, रानी! उतना दीपक को
करता नहीं पतंग, न उतना शशि को करता प्यार चकोर
तरु की सबसे ऊँची शाखा पर से निशि भर अपलक हो
देखा करता है जो अपने प्रिय के सुंदर मुख की ओर।

फणि मणि को करता न प्यार उतना जिसके खो जाने पर
शीश पटक कर मर जाता वह, मीन नहीं जल को करती
उतना प्यार कभी, यद्यपि क्षण भर वियोग हो जाने पर
प्रियतम के, वह तड़प-तड़प कर विकल उसी स्थल पर मरती

जितना प्यार तुम्हें करता हूँ मैं, कब उसका आधा भी
जननी पहले शिशु को करती, जिसका भोला रूप निहार
जाती भूल प्रसव-पीड़ा वह, क्‍या वियोगिनी राधा भी,
मथुरा गये हुए मोहन को करती होगी उतना प्यार!

अपने में तुमको देखा है मैंने तुममें अपने को
एक दूसरे के सपने हम यों न बने थे तपने को।

1941