seepi rachit ret

दुःखांत नाटक का नायक

पृथ्वी रंगमंच है जिसका सब प्रकार से पूर्ण, महान,
अपनी अलख लेखनी से जगपति ने जिसको स्वयं लिखा
काल-पृष्ठ पर, उस दुखांत नाटक का मैं नायक गतिमान
भेजा जिसको विधि-निर्देशक ने सब अग्रिम कृत्य सिखा।

खिँची यवनिका, देख रहे नक्षत्र-देवता नीरव-से
दर्शक बनकर नायक को, जिसने कि एक कोने से आ
शीघ्र ढँक लिया रंगमंच को निज प्रतिभा के गौरव से
नव गीष्मार्क-सदृश, लेता है कुछ क्षण में जो नभ को छा।

किंतु दृष्य बदला, न परिस्थितियों ने उसका साथ दिया
नाटक था दु:खांत क्योंकि, जो किया हुआ उलटा परिणाम।
वैभव के उस करुण पतन ने दर्शक-गण को स्तब्ध किया,
कितने मूर्छित गिरे, सिसकने लगे देख कितने वह काम।

पर कितना भी निकट सत्य के, अभिनय तो अभिनय होता,
भीतर से निर्लिप्त सदा मैं, बाहर से हँसता-रोता।

1941