seepi rachit ret

देखो, भूल गयी न मुझे तुम

देखो, भूल गयी न मुझे तुम, मैं कहता था पहले ही,
मेरी याद तुम्हारे मन से मिट जायेगी उसी तरह,
मिट जाती है, प्रिये! जिस तरह से नौका के जाते ही
पानी की रेखा, पल भर अंकित कर जल की नील सतह !

इसी लिये जब उड़ती भावुकता की दुर्दम आँधी में
बहक-बहक उठती थी तुम, तब विस्मय से बनकर गूँगा
कहता था मैं–‘और भला हँस गले-मिलोगी जब पी से
प्रणयसेज पर, तब भी क्या मैं याद इसी विधि आऊँगा!’

रोषभरी काली आँखों में आँसू भरकर मेरी ओर
देखा था तुमने, ज्यों कहती, ‘नारी-हृदय नहीं सस्ता
पुरुषों-सा, मैं कोतवाल को उलटा डाँट रहा हूँ चोर’
आज तुम्हारी भावुकता वह कहाँ! ज्ञान मेरा हँसता।

देखा करता था मैं पहले यह विषाद से पूर्ण भविष्य,
अब अतीत को देख रहा हूँ जिसमें सब हो चुका हविष्य।

1943