seepi rachit ret

मृत्यु

सुंदर है वह मृत्यु, पुतलियाँ क्षण-क्षण जाती हों ऐंठी
जब कि किसीकी ओर देखती, जो उर-स्पंदन पा धीमे
जलता मस्तक सहलाती हो नतमुख सिरहाने बैठी,
बड़ी-बड़ी आँखों से मोती बरसाती, कातर जी में।

नित की निद्रा-सी पर कैसे उतर सकेगी चिर-निद्रा
पलकों में, इस मुख का मेरे जाने पर क्‍या होगा, सोच
चाहेगा बल कर के रखना प्रिय जब साँसे, शतछिद्रा
तन की छलनी में, आने में मृत्यु करेगी तब संकोच।

करुणा वह सुंदर होगी जब चार सजल नयनों के बीच
मान-अश्रु-परिहास-द्वंद्व-स्मृति चलचित्रों-सी आयेगी
अंतकाल में, और तभी कोई अति निष्ठुरता से खींच
दूर अजाने तम-कुंजों की छाया में ले जायेगी।

एक भयानक आकृति तब वह करुणा, सुंदरता लेगी
तब तक, जब तक वह बरसों में सब कुछ नहीं भुला देगी।

1941