shabdon se pare
दिन का शेष हुआ जाता है
माँझी ने निज जाल समेटा
मुँह पर चादर ताने लेटा
तम में निज प्रियतम से भेंटा
धूमिल वेश हुआ जाता है
माँझी जो पक्के थे धुन के
लौटे घर मोती चुन-चुनके
साथ न यह हो पाया उनके
अस्त दिनेश हुआ जाता है
अब वे घाट अनोखे आये
कोई, कहीं न, दायें-बायें
अपने भी लग रहे पराये
देश, विदेश हुआ जाता है
दिन का शेष हुआ जाता है
1980