shabdon se pare
दुख के नील घनों में सुख की विद्युत् -सी रेखा है
आँसू की लड़ियों से मैंने इंद्रधनुष देखा है
लौट गये सब देख-देखकर स्मितियाँ मधुर अधर में
पूछा नहीं किसीने, कितनी ज्वाला है अंतर में
क्यों यह जीवन का कुसुमित पथ काँटों ने छेका है
काव्य बने कुछ शब्द, भावना के तारों को छूकर
उज्ज्वल, मधुर बनी कुछ बूँदें दृग-कोरों से चूकर
उर में किंतु अनंत व्यथा का सागर अनदेखा है
उर में तड़प, गीत अधरों पर, बेसुध पर फैलाये
बिँधा तीर से नीलकंठ ज्यों नभ में उड़ता जाये
विष तो पिया किंतु मस्तक पर चढ़ी न विधु-लेखा है
दुख के नील घनों में सुख की विद्युत्-सी रेखा है
आँसू की लड़ियों से मैंने इंद्रधनुष देखा है