shabdon se pare

फूलों की पंखुरियों पर रखना, प्रभु!
काँटों पर या मुझे सुलाना तुम
एक ही निवेदन है बार-बार
पल भर भी मन से मत भुलाना तुम

अंगारे हिम-शीतल चंदन-से
काँटे भी मृदु कुसुमोपम होंगे
पाते ही परस तुम्हारे कर का
पत्थर भी मोम-से नरम होंगे

पीड़ा में सुख की अनुभूति और
दुख में भी स्निग्धता प्रचुर होगी
चरणों तक लक्ष्य स्वयं पहुँचेगा
मेरी दिग्भ्रांति भी मधुर होगी

सूरज जब बदली से निकलेगा
तम का भ्रमजाल बिखर जायेगा
लपटों में तप-तपकर कुंदन-सा
जीवन यह और निखर जायेगा

पान कर लिया कृपामृत जिसने
शीश कटने पर भी विहँसता है
चढ़ता है स्वर्गों के पथ पर वह
रथ भले पंक-मध्य धँसता है

1970