shabdon se pare

मुक्ति की बातें निरी ढोंग हैं
चाहते जीना सब लोग हैं

सपना महात्माओं का, मुनियों का
सिद्धों का, संतों का, गुणियों का
मुक्ति का नारा बेमानी है
मैंने तो जीने की ठानी है

जीऊँ ऐसे कि काल भी डोले
मौन हो मुखर, मुक्ति जय बोले
आप जब शून्य हुआ, कुछ न कहीं
क्या अमरता कि जहाँ मैं ही नहीं!

मुक्ति तुलसी ने सदा त्यागी थी
मुक्ति गांधी ने नहीं माँगी थी
मैं तो मरने से नहीं डरता हूँ
मुक्ति के नाम से सिहरता हूँ

1966