tilak kare raghuveer
हमारे कहने पर मत जायें
कब हमने मन से चाहा है, शरण आपकी आयें!
मन की उछल-कूद है तब तक
जब तक आप न छूते मस्तक
जब तक हैं ये छवियाँ मोहक
इसके दाँयें-बायें
आप शरण में यदि ले लेंगे
इसके सारे राग मिटेंगे
कैसे नित नव रास रचेंगे
होंगी ये रचनायें!
हाँ, यदि साथ इसे भी कर लें
निर्गुण में भी कुछ गुण भर लें
तो हम भी वन का पथ धर लें
जग से दृष्टि फिरायें
हमारे कहने पर मत जायें
कब हमने मन से चाहा है, शरण आपकी आयें!