tilak kare raghuveer

कैसे पहुँचूँ तुझ तक, स्वामी!
मैंने हर मालाधारी की उँगली भी हो थामी?

सबने इधर-उधर भटकाकर
छोड़ दिया है मुझे द्वार पर
कोई ले जाने की भीतर

नहीं भर रहा हामी

जब इतना दुर्बल मन मेरा
लाँघ न पाता अपना घेरा
कैसे द्वार लाँघकर तेरा

आये यह सुखकामी!

इसे न जग से मुक्ति चाहिए
छिपी भक्ति में भुक्ति चाहिए
बस इसकी ही युक्ति चाहिए

दिखे पुण्य-पथ-गामी

कैसे पहुँचूँ तुझ तक, स्वामी!
मैंने हर मालाधारी की उँगली भी हो थामी?