tilak kare raghuveer
खुला है अंधगुफा का द्वार
लोग खडे हैं एक-एककर जाने को तैयार
इस तममयी गुफा में अपलक
देख दूर तक नयन गये थक
कोई कहीं न ऐसा अब तक
जो कुछ कहे पुकार
जाता भी हो जीव अकेला
पर जो यहाँ जुड़ा अलबेला
संभव है, फिर से वह मेला
पाता हो उस पार
छोड़ अरूप स्वप्नमय काया
जब वह यहाँ लौट भी आया
कब फिर-से उनसे मिल पाया
जो छूटे इस बार!
खुला है अंधगुफा का द्वार
लोग खडे हैं एक-एककर जाने को तैयार